Tuesday 12 October 2021

Article 21 of Indian constitution Full Explain

The article 21 of the Indian constitution is one of those articles which are interpreted most of the times. In this post we are going the actual meaning of the article 21 and it requires so much interpretation. The complete notes on article 21 of Indian constitution in Hindi is here.


The article 21 of Indian constitution says “किसी भी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वत्रंता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जायेगा, अन्यथा नहीं.”

पुरे संविधान मैं अगर कोई ऐसा अनुच्छेद है जिसे सब से अधिक बार व्याख्या करने कि आवस्यकता पड़ी हो तो वह है अनुच्छेद 21. दरअसल एक अच्छे संविधान को बहुत ही लम्बे समय तक देश को चलाना पड़ता है. पर बदालते वक़्त के साथ paristithiyan और सोच दोनों ही बदल जाते हैं, और यह यह संभव नहीं कि संविधान के हर अनुच्छेद हर परिस्थिति मैं सामान रूप से लागु हों.

अनुच्छेद 21 मैं हमारी जरूरतों के साथ साथ हमारी आजादी, अधिकार, संमान, निजता कि बात भी कही गयी है. और यही वजह है की सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 की व्याख्या हर बदलते वक्त के साथ साथ किया है.

अनुच्छेद 21 एक मौलिक अधिकार है, जो कि नागरिकों और गैर नागरिकों दोनों के लिए ही उपलब्ध है. जो कहता है कि No one shall be deprived of life and personal liberty except according to procedure established by law.

किसी भी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वत्रंता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जायेगा, अन्यथा नहीं.

इस अनुच्छेद के 3 मुख्या तत्त्व हैं,

• प्राण

• दैहिक स्वत्रंता

• विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया

विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया

विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का अर्थ है – “कानून और संविधान मैं लिखित प्रक्रिया”

अनुच्छेद 21 अमेरिकी संविधान के एक अनुच्छेद से मिलता जुलता है. जो कहता है कि “किसी भी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वत्रंता से कानून कि उचित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जायेगा, अन्यथा नहीं”.

अंतर बस विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया और कानून कि उचित प्रक्रिया का आधर है.

जिस भी देश मैं कानून कि उचित प्रक्रिया के आधर पर न्याय सुनिश्चित किया जाता है. वहां सर्वोच्च न्यायलय को अधिकार होता है कि वह प्राण और दैहिक स्वत्रंता का संरक्षण करे. और कोई भी ऐसा कानून जो हमारे दैहिक स्वत्रंता का उलंघन करता हो उसे तुरंत ही निरस्त कर सके. क्योंकि कानून कि उचित प्रक्रिया का ज्ञान सर्वोच्च न्यायलय को ही हो सकता है.

परन्तु जिस देश मैं विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अधर पर न्याय होता है वहां, न्यायलय को कानून और संविधान मैं लिखित प्रक्रिया के अधर पर ही न्याय देना होता है और न कि अपने विवेक से. हालाँकि अंतिम निर्णय दोनों ही सन्दर्भ मैं न्यालय को ही देना होता है.

दोनों मैं अंतर यह है कि अमेरिका मैं न्यायलय को अपने विवेक अनुसार प्राण और दैहिक स्वत्रंता प्रदान करने का अधिकार होता है. वहीँ भारत मैं न्यायलय को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया पर चलकर न्याय देने होता है.

और इस तरह हमारे संविधान में “विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का इस्तमाल हुआ.

दैहिक स्वतंत्रता

मेनका गाँधी वि. यूनियन of इंडिया केस: इस केस मैं मेनका गाँधी का पासपोर्ट भारत सरकार ने बिना किसी सूचना के जब्त कर लिया. तब मेनका गाँधी ने इसे यह कहते हुए अपील किया कि यह उनके दैहिक स्वतंत्रता का उलंघन है.

तब सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 कि पुनः व्याख्या कि और दैहिक स्वतंत्रत कि एक नई परिभासा दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई भी ऐसे कानून या कार्यपालिका आदेश जो दैहिक स्वतंत्रत को बाधित करता हो, तो उस कानून को Test of Resasonability पास करना होगा.

अर्थात कानून बनाने वाले को न्यायलय के सामने तर्क सांगत तरीके से यह साबित करना होगा कि किस कारण वस् दैहिक स्वतंत्रत को बाधित किया गया.

यह केस इस मायने से भी महत्वपूर्ण है कि इस केस के बाद से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया और कानून द्वारा उचित प्रक्रिया मैं कोई अंतर नहीं रह गया.

प्राण

इस के अंतर्गत बोहोत से अधिकार आते हैं जैसे

• Right to live

• Right to die

• Right to Privacy

• Right to live in a health environment

और इन सभी अधिकारों को किसी भी नागरिक या गैर नागरिक को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है अन्यथा नहीं. The article 21 of Indian constitution in Hindi.

आपातकाल के वक्त अनुच्छेद 21 का प्रभाव – Article 21 of constitution during the emergency

हमारे संविधान के उपबंधों के अनुसार कुछ ऐसे मौलिक अधिकार हैं जो आपातकाल के प्रभाव के साथ ही निष्क्रिय हो जाते हैं. अनुच्छेद 21 भी उनमे से एक है.

अनुच्छेद 359 मैं यह उल्लेख किया गया है कि राष्ट्रपति आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 21 के द्वारा दिए गए उपबंधों को लागु होने से रोक सकता है. और इसी वजह से कुल 3 बार

• 1962 भारत चीन युद्ध के दौरान

• 1971 भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान

• 1976 के आतंरिक आपातकाल के दौरान

अनुच्छेद 21 को निरस्त किया जा चूका है.

परन्तु, 44 वां संविधान संसोधन कर क नया उपबंध जोड़ा गया, जिससे कि अब अनुच्छेद 21 को आपातकाल के दौरान निरस्त तो किया जा सकता है पर राष्ट्रपति का यह आदेश न्यायिक समीक्षा के दायरे मैं होगा.

अर्थात अब भले आपातकाल ही क्यों न हो, केवल तर्क सांगत तरीके से ही अनुच्छेद 21 के निरस्त किया जा सकेगा.

The provisions of article 359 empower the president to dismiss the rights given by article 21 during the national emergency. During the national emergency of 1962, 1971 and 1976 the article 21 was detained.

But during the 44th constitutional amendment, new provisions were added to make it even more strict. Now the detention of Article 21 during the emergency comes under the range of judicial review.

Hope you like our post on “Article 21 in Indian constitution ". If you have any doubt then please comment below






No comments:

Post a Comment

भारतीय दण्ड संहिता, 1860

  भारतीय दण्ड संहिता   भारत   के अन्दर भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ   अपराधों   की परिभाषा व   दण्ड   का प्रावधान करती है। किन...